मुजफ्फरनगर। शहर की हवा को जहरीला बनाने वाले औद्योगिक कचरे के खिलाफ किसानों का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा। भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक के नेतृत्व में यह विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि वर्षों से जमा होते आ रहे आक्रोश का विस्फोट था।
भोपा रोड पर किसानों ने जिस तरह औद्योगिक कचरा ढो रहे ट्रकों को रोका, उससे साफ हो गया कि अब यह लड़ाई सिर्फ मांगों तक सीमित नहीं रहने वाली, बल्कि सीधे प्रदूषण की जड़ पर प्रहार करेगी।
किसानों का कहना है कि मुजफ्फरनगर में हाल के वर्षों में हवा की गुणवत्ता लगातार गिरती चली गई है। सुबह और शाम धुएं की मोटी परत शहर और आसपास के गांवों को ढक लेती है। खेतों में काम करने वाले किसान हों या स्कूल जाने वाले बच्चे, हर कोई सांस लेने में तकलीफ महसूस कर रहा है। बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों की हालत और भी खराब हो रही है। ग्रामीण इलाकों तक फैलते इस प्रदूषण ने यह साबित कर दिया है कि समस्या केवल शहरी नहीं, बल्कि पूरे जिले की है।
आंदोलन के दौरान किसानों ने औद्योगिक इकाइयों पर गंभीर आरोप लगाए कि वे नियमों को ताक पर रखकर बाहर से म्युनिसिपल कचरा मंगाकर जला रही हैं। यह कचरा कागज या प्लास्टिक तक सीमित नहीं, बल्कि इसमें रबर, टायर, केमिकल युक्त कपड़े, धातु और जानवरों के अवशेष तक शामिल हैं। किसानों का कहना है कि जब इस तरह का कचरा जलता है तो उससे निकलने वाला धुआं सीधे इंसानी शरीर पर हमला करता है, जिसका असर धीरे-धीरे गंभीर बीमारियों के रूप में सामने आता है।
शनिवार रात जब RDF के नाम पर लाए जा रहे ट्रकों को रोका गया तो स्थिति पूरी तरह बदल गई। जांच में सामने आया कि जिन ट्रकों को वैकल्पिक ईंधन बताया जा रहा था, वे वास्तव में घरेलू और म्युनिसिपल कचरे से भरे हुए थे। इस खुलासे के बाद प्रशासन भी दबाव में आ गया। मौके पर पहुंचे अधिकारियों को किसानों के सवालों का जवाब देना पड़ा और उद्योगों की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए।
जैसे-जैसे रात बढ़ती गई, तनाव भी बढ़ता चला गया। किसानों का गुस्सा इस कदर था कि उन्होंने साफ संदेश देने के लिए कठोर विरोध का रास्ता चुना। हालात संभालना पुलिस और प्रशासन के लिए चुनौती बन गया। देर रात तक बातचीत, समझाइश और आश्वासनों का दौर चलता रहा। अंततः प्रशासन को कड़े कदम उठाने का भरोसा देना पड़ा, तब जाकर स्थिति कुछ हद तक शांत हुई।
धरने के बाद प्रशासन की ओर से यह स्पष्ट किया गया कि अब जिले में गीला कचरा या अवैध ईंधन लेकर आने वाले किसी भी वाहन को बख्शा नहीं जाएगा। ऐसे ट्रकों की जब्ती, औद्योगिक इकाइयों की सघन जांच और नियमों का उल्लंघन पाए जाने पर सीधी सीलिंग की कार्रवाई की जाएगी। यह भी कहा गया कि प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों पर अब कागजी कार्रवाई नहीं, बल्कि मौके पर ठोस कदम उठाए जाएंगे।
किसान नेताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह आंदोलन फिलहाल रुका है, खत्म नहीं हुआ। यदि भविष्य में दोबारा कचरा जलाने या नियमों की अनदेखी की गई तो इससे कहीं बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा। उनका कहना है कि यह लड़ाई किसी संगठन या सड़क तक सीमित नहीं, बल्कि आम लोगों के जीवन और स्वास्थ्य से जुड़ी है।
स्थानीय लोगों का भी कहना है कि लंबे समय बाद किसी ने प्रदूषण के मुद्दे को इतनी मजबूती से उठाया है। अब निगाहें प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं। यदि घोषित कदम जमीन पर उतरे तो मुजफ्फरनगर की हवा साफ होने की उम्मीद जगी है, लेकिन यदि लापरवाही दोहराई गई तो यह संघर्ष और तेज होने तय है।


