नई दिल्ली । ‘रात ही नहीं, दिन में भी घर से निकलने में डर लग रहा है। जब तक किराये का दूसरा घर नहीं मिलता कुछ दिनों के लिए अपने बच्चों के साथ भाई के घर रहने जा रही हूं।’ यह कहना है वसंतकुंज के रंगपुरी में घटनास्थल के पड़ोस में रहने वाली दीपा का। शनिवार को उनके चेहरे पर खौफ का मंजर साफ नजर आया।
उन्होंने बताया कि डर के कारण अब यहां रहना काफी मुश्किल है। पिता-बेटियों के जान देने की घटना को याद करते ही सहम जाती हूं। हीरालाल को बीते सप्ताह बेटी को अस्पताल ले जाते देखा था। अक्सर वह परेशान दिखता था। जब बेटियों की तबीयत के बारे में पूछा जाता था तो वह बड़बड़ाते हुए निकल जाता था। उम्मीद नहीं थी कि परिवार ऐसे खत्म हो जाएगा।
इधर, इमारत की दूसरी मंजिल रहने वाली रिंकी ने बताया कि जब वह यहां रहने आई थी तो कुछ दिन तक हीरालाल व बेटियों से बात करने की कोशिश की, लेकिन कुछ समय बाद परिवार ने खुद को पूरी तरह से घर में ही कैद कर लिया था। तीसरी बेटी पहले सामान लेने आती-जाती थी, लेकिन अब वह भी कई महीनों से घर पर ही रहती थी। पिता-बेटियों की खुदकुशी ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया है। कई बार बेटियों के लड़ने की आवाज आती थी। जब वह उन्हें देखने जाती थी तो बेटियां चुप हो जाती थीं।
पानी लेने के लिए भी नहीं थी आर्थिक स्थिति ठीक
इमारत में पानी की सप्लाई करने वाले मोंटू ने बताया कि उनके आरओ प्लांट का पानी हर घर पर जाता है, लेकिन हीरालाल ने कभी पानी नहीं मंगवाया। 20 लीटर पानी की बोतल गोदाम से लेने की कीमत 10 रुपये है। घर तक पहुंचाने की कीमत 30 से 40 रुपये होती है। ऐसे में हीरालाल चंद रुपये बचाने के लिए खुद ही साइकिल से पानी लाता था।
त्योहार पर घर का दरवाजा रहता था बंद
लोगों का कहना है कि उन्होंने कभी हीरालाल के घर पर किसी रिश्तेदार को आते-जाते नहीं देखा। यहां तक की त्योहार के समय भी वह घर का दरवाजा बंद रखते थे। एक महिला ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि वह भी बिहार से है। ऐसे में उन्होंने कई बार उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन परिवार ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। हीरालाल पड़ोसियों के साथ रिश्तेदारों से भी कटे रहते थे।
हीरालाल का भाई भी पूरी तरह से दिव्यांग
मोहल्ले में रहने वाली सविता ने बताया कि उन्होंने मृतकों के शव को ले जाते हुए देखा था। हीरालाल का भाई घटनास्थल पर आया था। वह भी पूरी तरह से दिव्यांग है। हीरालाल (46) की चारों बेटियां, नीतू (26), निक्की (24), नीरू (23) और निधि (20) भी चलने-फिरने में असमर्थ थीं। हीरालाल के भाई मोहन शर्मा और भाभी गुड़िया शर्मा ने बताया कि हीरालाल ने अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद पारिवारिक मामलों में रुचि लेना बंद कर दिया था।
दूर की दुकानों से ही लाते थे राशन
घटनास्थल के पास के दुकानदारों ने बताया कि हीरालाल उनके यहां से बहुत की कम जरूरत का सामान लेते थे। अक्सर वह मंडी या मुख्य बाजार से ही सामान लाते दिखते थे। दुकानदार पिंटू ने बताया कि कुछ समय पहले तक उनकी एक बेटी सामान लेने आती थी। वह दूध-दही या चिप्स खरीदती थी, लेकिन जब वह भी चलने में असमर्थ हो गई तो आना बंद कर दिया। हीरालाल ने कभी उधार का सामान नहीं लिया, जितने रुपये होते थे उतना ही सामान खरीदता था।