सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार जब अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंच जाती है कि आरोपी जमानत का हकदार है तो वह उसकी रिहाई को स्थगित नहीं कर सकती। शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी की रिहाई को टालना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पटना हाईकोर्ट के 19 अप्रैल, 2024 के आदेश के खिलाफ जितेंद्र पासवान की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में आरोपी को छह महीने बाद जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश कहता है कि अपीलकर्ता जमानत का हकदार है और वास्तव में, उसने अपीलकर्ता को जमानत दी है। हालांकि आदेश के पैराग्राफ नौ में कहा गया है कि जमानत देने वाले आदेश को छह महीने बाद लागू किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एक बार जब अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंच जाती है कि आरोपी जमानत का हकदार है तो अदालत जमानत देने को स्थगित नहीं कर सकती। यह मानने के बाद कि आरोपी जमानत का हकदार है, अगर अदालत जमानत देने के आदेश के क्रियान्वयन को स्थगित करती है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।