नई दिल्ली। भूकंप का केंद्र दिल्ली के धौला कुआं इलाके में जमीन से सिर्फ पांच किलोमीटर नीचे था। ऊपरी सतह पर ही भूकंप का केंद्र होने के चलते भूकंप के झटके बेहद तेज महसूस किए गए।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सोमवार सुबह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आया भूकंप इस क्षेत्र की भूगर्भीय विशेषताओं में प्राकृतिक कारणों से होने वाले बदलावों का परिणाम था। वैज्ञानिकों ने टेक्टोनिक प्लेट्स को भूकंप की वजह होने से इनकार कर दिया। सोमवार सुबह करीब साढ़े पांच बजे दिल्ली में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। भूकंप का केंद्र दिल्ली के धौला कुआं इलाके में जमीन से सिर्फ पांच किलोमीटर नीचे था। ऊपरी सतह पर ही भूकंप का केंद्र होने के चलते भूकंप के झटके बेहद तेज महसूस किए गए।
दिल्ली भूकंप के लिहाज से संवेदनशील
गौरतलब है कि दिल्ली के धौला कुआं क्षेत्र में साल 2007 में भी 4.6 तीव्रता का भूकंप आया था। हालांकि, उसका प्रभाव सोमवार के भूकंप जितना महसूस नहीं किया गया था। साल 2007 में आए भूकंप का केंद्र 10 किलोमीटर की गहराई में था। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक ओ पी मिश्रा ने बताया कि दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र IV के तहत आती है, जहां भूकंप का खतरा ज्यादा है। उन्होंने बताया कि साथ ही हिमालय रेंज में भूकंप के खतरे के चलते भी यहां भूकंप का खतरा बड़ा है।
दिल्ली और उत्तर भारत में कई भूकंप आ चुके
वैज्ञानिक ओपी मिश्रा ने बताया कि दिल्ली क्षेत्र में मध्यम से खतरनाक स्तर के भूकंप आ सकते हैं। साल 1803 में हिमालय क्षेत्र में 7.5 मैग्नीट्यूड का भूकंप आ चुका है। साल 1991 में उत्तरकाशी में 6.8 तीव्रता वाला और 1999 में चमोली में 6.6 तीव्रता वाला भूकंप आ चुका है। साल 2015 में नेपाल में भी 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था। इनके अलावा हिंदुकुश पर्वत श्रृंख्ला क्षेत्र में भी कई मध्यम तीव्रता के भूकंप आ चुके हैं। दिल्ली या आसपास के क्षेत्रों की बात करें तो साल 1720 में दिल्ली में 6.5 मैग्नीट्यूड, साल 1842 में मथुरा में 5 मैग्ननीट्यूड, साल 1956 में बुलंदशहर में 6.7 मैग्नीट्यूट और साल 1966 में मुरादाबाद में 5.8 मैग्नीट्यूड का भूकंप आ चुका है।